यदृच्छालाभसंतुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः ।
समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते ॥ २२ ॥
अनुवाद
जो व्यक्ति बिना प्रयास के होने वाले लाभ से संतुष्ट रहता है, द्वंद्व से मुक्त रहता है और ईर्ष्या नहीं करता, जो सफलता और असफलता दोनों में स्थिर रहता है, वह व्यक्ति कर्म करते हुए भी कभी बंधता नहीं है।