श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 4: दिव्य ज्ञान  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  4.22 
 
 
यदृच्छालाभसंतुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः ।
समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते ॥ २२ ॥
 
अनुवाद
 
  जो व्यक्ति बिना प्रयास के होने वाले लाभ से संतुष्ट रहता है, द्वंद्व से मुक्त रहता है और ईर्ष्या नहीं करता, जो सफलता और असफलता दोनों में स्थिर रहता है, वह व्यक्ति कर्म करते हुए भी कभी बंधता नहीं है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.