श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 4: दिव्य ज्ञान  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  4.20 
 
 
त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः ।
कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किञ्चित्करोति सः ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  सभी कर्मों के फल के प्रति मोह का त्याग करके, हमेशा संतुष्ट और स्वतंत्र रहकर, वह सभी प्रकार के कार्यों में व्यस्त रहते हुए भी कोई स्वार्थपूर्ण कार्य नहीं करता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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