वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भगवद्-गीता
»
अध्याय 4: दिव्य ज्ञान
»
श्लोक 20
श्लोक
4.20
त्यक्त्वा कर्मफलासङ्गं नित्यतृप्तो निराश्रयः ।
कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किञ्चित्करोति सः ॥ २० ॥
अनुवाद
play_arrowpause
सभी कर्मों के फल के प्रति मोह का त्याग करके, हमेशा संतुष्ट और स्वतंत्र रहकर, वह सभी प्रकार के कार्यों में व्यस्त रहते हुए भी कोई स्वार्थपूर्ण कार्य नहीं करता।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.