काङ्क्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवता ।
क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा ॥ १२ ॥
अनुवाद
इस जगत में मनुष्य फलदायी कार्यों में सफलता पाना चाहते हैं और इसलिए देवताओं की पूजा करते हैं। निस्संदेह, इस जगत में मनुष्यों को फलदायी कार्यों के परिणाम शीघ्र प्राप्त होते हैं।