श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 4: दिव्य ज्ञान  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  4.10 
 
 
वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः ।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भ‍ावमागताः ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  आसक्ति, भय और क्रोध से मुक्त होकर, मुझमें पूर्णतया तन्मय होकर और मेरी शरण में आकर अतीत में बहुत से लोग मेरे ज्ञान से पवित्र हुए हैं। इस प्रकार, उन्होंने सभी ने मेरे प्रति दिव्य प्रेम प्राप्त कर लिया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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