श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 3: कर्मयोग  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  3.8 
 
 
नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः ।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  अपना नियत कर्तव्य पालन करो, क्योंकि कर्तव्य निभाने की अपेक्षा कर्तव्य से दूर रहना बेहतर है। कर्म के बिना तो शरीर का भरण-पोषण भी नहीं हो सकता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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