यस्त्विन्द्रियाणि मनसा नियम्यारभतेऽर्जुन ।
कर्मेन्द्रियैः कर्मयोगमसक्तः स विशिष्यते ॥ ७ ॥
अनुवाद
दूसरी ओर, यदि कोई ईमानदार व्यक्ति अपने मन द्वारा कर्मेन्द्रियों को वश में करने का प्रयास करता है और बिना किसी मोह के कर्मयोग (कृष्णभावनामृत में) प्रारम्भ करता है, तो वह निस्संदेह श्रेष्ठ है।