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श्रीमद् भगवद्-गीता
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अध्याय 3: कर्मयोग
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श्लोक 41
श्लोक
3.41
तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ ।
पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम् ॥ ४१ ॥
अनुवाद
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अतः हे अर्जुन, भारतियों में श्रेष्ठ! शुरुआत में ही इन्द्रियों को वश में करके पाप के इस प्रतीक (काम) का दमन करो और ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार के इस विध्वंसक का वध करो।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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