श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 3: कर्मयोग » श्लोक 4 |
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| | श्लोक 3.4  | |  | | न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्य पुरुषोऽश्नुते ।
न च सन्न्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति ॥ ४ ॥ | | अनुवाद | | केवल कर्म से विरक्त होने मात्र से कोई कर्म के फल से मुक्त नहीं हो सकता और न ही केवल संन्यास से ही सिद्धि प्राप्त की जा सकती है। | |
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