श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 3: कर्मयोग » श्लोक 37 |
|
| | श्लोक 3.37  | |  | | श्रीभगवानुवाच
काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्ध्येनमिह वैरिणम् ॥ ३७ ॥ | | अनुवाद | | भगवान ने कहा- हे अर्जुन! इसका कारण रजोगुण के सम्पर्क से उत्पन्न काम है, जो बाद में क्रोध का रूप लेता है और जो इस संसार का सर्वभक्षी पापी शत्रु है। | |
| |
|
|