श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 3: कर्मयोग  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  3.28 
 
 
तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः ।
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्ज‍ते ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  हे महाबाहो! जो व्यक्ति परम सत्य को जानता है, वह कर्म और फल के अंतर को भली-भाँति जानता है और वह कभी भी अपनी इंद्रियों में या इंद्रिय-तृप्ति में नहीं लिप्त होता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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