तत्त्ववित्तु महाबाहो गुणकर्मविभागयोः ।
गुणा गुणेषु वर्तन्त इति मत्वा न सज्जते ॥ २८ ॥
अनुवाद
हे महाबाहो! जो व्यक्ति परम सत्य को जानता है, वह कर्म और फल के अंतर को भली-भाँति जानता है और वह कभी भी अपनी इंद्रियों में या इंद्रिय-तृप्ति में नहीं लिप्त होता।