न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम् ।
जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन् ॥ २६ ॥
अनुवाद
सकाम कर्मों में आसक्त अज्ञानी व्यक्तियों को कर्म करने से रोकना नहीं चाहिए ताकि उनके मन विचलित न हों। बल्कि भक्तिभाव से कर्म करते हुए उन्हें सभी प्रकार के कार्यों में लगाना चाहिए (जिससे कृष्णभावनामृत का क्रमिक विकास हो)।