सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत ।
कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्चिकीर्षुर्लोकसङ्ग्रहम् ॥ २५ ॥
अनुवाद
अज्ञानीजन जिस प्रकार आसक्ति के वश में होकर अपने कर्तव्य का पालन करते हैं, उसी प्रकार विद्वानों को भी चाहिए कि वे लोगों को सन्मार्ग पर ले जाने के लिए बिना आसक्ति के कर्म करें।