न मे पार्थास्ति कर्तव्यं त्रिषु लोकेषु किञ्चन ।
नानवाप्तमवाप्तव्यं वर्त एव च कर्मणि ॥ २२ ॥
अनुवाद
हे पृथापुत्र! तीनों लोकों में मेरा कोई कार्य नियत नहीं है, न ही मुझे किसी भी वस्तु की आवश्यकता या कमी है। फिर भी मैं नियत कर्तव्यों का पालन करने में तत्पर रहता हूँ।