श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 3: कर्मयोग  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  3.19 
 
 
तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर ।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमाप्‍नोति पूरूषः ॥ १९ ॥
 
अनुवाद
 
  कर्म के परिणामों में आसक्त हुए बिना मनुष्य को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, क्योंकि बिना किसी आसक्ति के कर्म करने से उसे परब्रह्म की प्राप्ति होती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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