वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भगवद्-गीता
»
अध्याय 3: कर्मयोग
»
श्लोक 18
श्लोक
3.18
नैव तस्य कृतेनार्थो नाकृतेनेह कश्चन ।
न चास्य सर्वभूतेषु कश्चिदर्थव्यपाश्रयः ॥ १८ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
स्वरूपसिद्ध व्यक्ति को अपने नियत कर्मों को पूरा करने या न करने में कोई स्वार्थ नहीं रह जाता, न ही उन्हें किसी अन्य प्राणी पर निर्भर रहने की आवश्यकता होती है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.