श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 3: कर्मयोग » श्लोक 14 |
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| | श्लोक 3.14  | |  | | अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः ।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ॥ १४ ॥ | | अनुवाद | | सभी जीव अन्नों पर निर्भर हैं, जो बारिश से उत्पन्न होते हैं। बारिश यज्ञ करने से होती है और यज्ञ नियत कर्मों से उत्पन्न होता है। | |
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