श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 3: कर्मयोग  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  3.12 
 
 
इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः ।
तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुङ्क्ते स्तेन एव सः ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाले देवता यज्ञ के अनुष्ठान से प्रसन्न होकर तुम्हारी सभी आवश्यकताएँ पूरी करेंगे। किन्तु जो मनुष्य इन देवताओं को अर्पित किये बिना ही उन उपहारों का भोग करता है, वह निश्चित रूप से चोर है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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