श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 2: गीता का सार  »  श्लोक 72
 
 
श्लोक  2.72 
 
 
एषा ब्राह्मी स्थितिःपार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति ।
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति ॥ ७२ ॥
 
अनुवाद
 
  यह आध्यात्मिक तथा ईश्वरीय जीवन का मार्ग है, जिसे प्राप्त करके मनुष्य विचलित नहीं होता। यदि कोई जीवन के अन्तिम समय में भी ऐसे स्थित हो तो वह परमात्मा के राज्य में प्रवेश कर सकता है।
 
 
इस प्रकार श्रीमद् भगवद्-गीता के अंतर्गत दूसरा अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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