आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं
समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत् ।
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे
स शान्तिमाप्नोति न कामकामी ॥ ७० ॥
अनुवाद
जिस पुरुष को इच्छाओं के अनवरत प्रवाह से कोई फर्क नहीं पड़ता - जो नदियों की तरह समुद्र में प्रवेश करती हैं, जो हमेशा भरता रहता है लेकिन हमेशा शांत रहता है - वही शांति प्राप्त कर सकता है, न कि वह मनुष्य जो ऐसी इच्छाओं को पूरा करने का प्रयास करता है।