नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना ।
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम् ॥ ६६ ॥
अनुवाद
जो कृष्णभावनामृत में परमेश्वर से जुड़ा नहीं है उसकी न तो बुद्धि दिव्य होती है और न ही मन स्थिर रहता है, जिसके बिना शांति की कोई संभावना नहीं है और शांति के बिना सुख कैसे हो सकता है।