श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 2: गीता का सार  »  श्लोक 66
 
 
श्लोक  2.66 
 
 
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य न चायुक्तस्य भावना ।
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम् ॥ ६६ ॥
 
अनुवाद
 
  जो कृष्णभावनामृत में परमेश्वर से जुड़ा नहीं है उसकी न तो बुद्धि दिव्य होती है और न ही मन स्थिर रहता है, जिसके बिना शांति की कोई संभावना नहीं है और शांति के बिना सुख कैसे हो सकता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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