वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भगवद्-गीता
»
अध्याय 2: गीता का सार
»
श्लोक 64
श्लोक
2.64
रागद्वेषविमुक्तैस्तु विषयनिन्द्रियैश्चरन् ।
आत्मवश्यैर्विधेयात्मा प्रसादमधिगच्छति ॥ ६४ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
किन्तु समस्त आसक्ति और नापसंद से मुक्त और अपने इन्द्रियों को नियमन के सिद्धांतों द्वारा वश में रखने में सक्षम व्यक्ति प्रभु की पूर्ण दया प्राप्त कर सकता है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.