वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भगवद्-गीता
»
अध्याय 2: गीता का सार
»
श्लोक 61
श्लोक
2.61
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः ।
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥ ६१ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
जो व्यक्ति अपनी इन्द्रियों पर पूर्ण नियन्त्रण रखते हुए इन्द्रिय-संयम करता है और अपनी चेतना को मुझमें केन्द्रित कर देता है, उसे स्थिरबुद्धि वाला व्यक्ति कहा जाता है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.