वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भगवद्-गीता
»
अध्याय 2: गीता का सार
»
श्लोक 58
श्लोक
2.58
यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः ।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥ ५८ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
जैसे कछुआ अपने अंगों को अंदर करके अपने कवच में समा जाता है, वैसे ही जो व्यक्ति अपनी इंद्रियों को इंद्रिय-विषयों से हटाकर वापस ले लेता है, वह पूर्ण रूप से चेतना की स्थिति में स्थिर हो जाता है।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.