वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् भगवद्-गीता
»
अध्याय 2: गीता का सार
»
श्लोक 49
श्लोक
2.49
दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय ।
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः ॥ ४९ ॥
अनुवाद
play_arrowpause
हे धनंजय! समस्त घृणित कर्मों को भक्ति द्वारा परे रखो और उसी भाव से भगवान में समर्पण कर दो। अपने सकाम कर्मों के फलों को भोगना चाहने वाले व्यक्ति, कृपण होते हैं।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.