श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 2: गीता का सार  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  2.44 
 
 
भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयापहृतचेतसाम् ।
व्यवसायात्मिका बुद्धिः समाधौ न विधीयते ॥ ४४ ॥
 
अनुवाद
 
  जो लोग स्वार्थी इच्छाओं और भौतिक संपदाओं से अत्यधिक जुड़े होते हैं, वे ऐसी वस्तुओं के मोह में फंस जाते हैं। उनके मन में परमेश्वर की भक्ति के प्रति दृढ़ संकल्प नहीं होता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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