श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 2: गीता का सार  »  श्लोक 42-43
 
 
श्लोक  2.42-43 
 
 
यामिमां पुष्पितां वाचं प्रवदन्त्यविपश्चितः ।
वेदवादरताः पार्थ नान्यदस्तीति वादिनः ॥ ४२ ॥
कामात्मानः स्वर्गपरा जन्मकर्मफलप्रदाम् ।
क्रियाविशेषबहुलां भोगैश्वर्यगतिं प्रति ॥ ४३ ॥
 
अनुवाद
 
  वेदों के उन अलंकृत शब्दों के प्रति, जो स्वर्ग की प्राप्ति, अच्छे जन्म, शक्ति इत्यादि के लिए विविध सकाम कर्मों को करने की सलाह देते हैं, अल्पज्ञानी मनुष्य बहुत आसक्त रहते हैं। इन्द्रियतृप्ति तथा ऐश्वर्यपूर्ण जीवन की इच्छा के कारण वे कहते हैं कि इससे बढ़कर कुछ भी नहीं है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.