श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 2: गीता का सार  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  2.40 
 
 
नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते ।
स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात् ॥ ४० ॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रयत्न में न तो नुकसान होता है न ही कमी होती है, बल्कि इस रास्ते पर की गई थोड़ी बहुत प्रगति भी सबसे खतरनाक प्रकार के भय से रक्षा कर सकती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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