श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 2: गीता का सार  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  2.30 
 
 
देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत ।
तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  हे भरत के वंशज! शरीर में वास करने वाले (आत्मा) का कभी वध नहीं किया जा सकता। इसलिए, किसी भी प्राणी के लिए शोक करना तुम्हारे लिए उचित नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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