श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 2: गीता का सार  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  2.25 
 
 
अव्यक्तोऽयमचिन्त्योऽयमविकार्योऽयमुच्यते ।
तस्मादेवं विदित्वैनं नानुशोचितुमर्हसि ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  यह आत्मा अव्यक्त, अकल्पनीय और अपरिवर्तनीय है। यह जानकर आपको शरीर के लिए शोक नहीं करना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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