श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 2: गीता का सार  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  2.24 
 
 
अच्छेद्योऽयमदाह्योऽयमक्ल‍ेद्योऽशोष्य एव च ।
नित्यः सर्वगतः स्थाणुरचलोऽयं सनातनः ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  यह आत्मा अखंडित और अघुलनशील है। इसे जलाना या सुखाना संभव नहीं है। यह शाश्वत, सर्वव्यापी, अविकारी, अचल व सदैव समान रहने वाली है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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