श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 2: गीता का सार » श्लोक 22 |
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| | श्लोक 2.22  | |  | | वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-
न्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥ २२ ॥ | | अनुवाद | | जैसे कोई व्यक्ति पुराने कपड़े त्यागकर नए कपड़े पहनता है, वैसे ही आत्मा पुराने और बेकार शरीरों को त्यागकर नए भौतिक शरीर लेती है। | |
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