श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 2: गीता का सार  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  2.20 
 
 
न जायते म्रियते वा कदाचि-
न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  आत्मा के लिए किसी भी समय जन्म या मृत्यु नहीं होती है। यह कभी पैदा नहीं हुई, कभी पैदा नहीं होती और कभी पैदा नहीं होगी। यह अजन्मी, शाश्वत, सदा चिरस्थायी और आदिम है। शरीर के मरने पर भी यह मरती नहीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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