श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 2: गीता का सार  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  2.15 
 
 
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ ।
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे श्रेष्ठ पुरुष अर्जुन! जो मनुष्य सुख तथा दुख से विचलित नहीं होता है और दोनों में समभाव रखता है, वह निश्चित ही मोक्ष प्राप्ति का अधिकारी है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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