श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 18: संन्यास योग  »  श्लोक 74
 
 
श्लोक  18.74 
सञ्जय उवाच
इत्यहं वासुदेवस्य पार्थस्य च महात्मन: ।
संवादमिममश्रौषमद्भुतं रोमहर्षणम् ॥ ७४ ॥
 
 
अनुवाद
संजय बोले: इस प्रकार मैंने दो महात्माओं, कृष्ण और अर्जुन, का वार्तालाप सुना है। और यह संदेश इतना अद्भुत है कि मेरे रोंगटे खड़े हो गए हैं।
 
Sanjaya said, "This is how I heard the conversation between these two great men, Krishna and Arjuna. And this message is so amazing that I am feeling thrilled."
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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