श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 18: संन्यास योग  »  श्लोक 71
 
 
श्लोक  18.71 
 
 
श्रद्धावाननसूयश्च श‍ृणुयादपि यो नर: ।
सोऽपि मुक्त: शुभाँल्ल‍ोकान्प्राप्‍नुयात्पुण्यकर्मणाम् ॥ ७१ ॥
 
अनुवाद
 
  और जो श्रद्धा एवं द्वेषरहित होकर यह सुनता है, वह सारे पापों से मुक्त हो जाता है और उन शुभ ग्रहों को प्राप्त होता है, जहाँ पुण्यवान लोग निवास करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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