श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 18: संन्यास योग  »  श्लोक 69
 
 
श्लोक  18.69 
 
 
न च तस्मान्मनुष्येषु कश्चिन्मे प्रियकृत्तम: ।
भविता न च मे तस्मादन्य: प्रियतरो भुवि ॥ ६९ ॥
 
अनुवाद
 
  इस संसार में न तो कोई सेवक उससे अधिक प्रिय है और न कभी कोई सेवक उसके समान प्रिय होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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