श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 18: संन्यास योग  »  श्लोक 66
 
 
श्लोक  18.66 
 
 
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श‍ुच: ॥ ६६ ॥
 
अनुवाद
 
  सभी प्रकार के धर्मों को त्यागकर केवल मेरी शरण में आ जाओ। मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा। डरो मत।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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