श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 18: संन्यास योग » श्लोक 63 |
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| | श्लोक 18.63  | |  | | इति ते ज्ञानमाख्यातं गुह्याद्गुह्यतरं मया ।
विमृश्यैतदशेषेण यथेच्छसि तथा कुरु ॥ ६३ ॥ | | अनुवाद | | मैंने तुम्हें ऐसे गोपनीय ज्ञान से अवगत करा दिया है जिससे अधिक गोपनीय कुछ नहीं है। इस पर पूरा मनन करो और उसके बाद अपनी इच्छानुसार कदम उठाओ। | |
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