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श्रीमद् भगवद्-गीता
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अध्याय 18: संन्यास योग
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श्लोक 60
श्लोक
18.60
स्वभावजेन कौन्तेय निबद्ध: स्वेन कर्मणा ।
कर्तुं नेच्छसि यन्मोहात्करिष्यस्यवशोऽपि तत् ॥ ६० ॥
अनुवाद
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मोह के वशीभूत होकर तुम इस समय मेरे निर्देशानुसार कर्म करने से इनकार कर रहे हो। लेकिन हे कुन्तीपुत्र! अपने ही स्वभाव के द्वारा उत्पन्न होने वाले कर्मों से बाध्य होकर तुम वही सब करोगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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