श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 18: संन्यास योग  »  श्लोक 57
 
 
श्लोक  18.57 
चेतसा सर्वकर्माणि मयि सन्न्यस्य मत्पर: ।
बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्च‍ित्त: सततं भव ॥ ५७ ॥
 
 
अनुवाद
सभी कार्यों में केवल मुझ पर निर्भर रहो और सदैव मेरी सुरक्षा में कार्य करो। ऐसी भक्ति में, मेरे प्रति पूर्णतः सचेत रहो।
 
Depend on Me for all your actions and always act under My protection. In such devotion, be fully conscious of Me.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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