श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 18: संन्यास योग  »  श्लोक 55
 
 
श्लोक  18.55 
भक्त्य‍ा मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वत: ।
ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम् ॥ ५५ ॥
 
 
अनुवाद
केवल भक्ति द्वारा ही मनुष्य मुझे मेरे स्वरूप में, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् के रूप में समझ सकता है। और जब ऐसी भक्ति द्वारा मनुष्य मेरे पूर्णतः चैतन्य में होता है, तो वह भगवान् के धाम में प्रवेश कर सकता है।
 
Only by devotion can I, the Supreme Personality of Godhead, be known as I am. When a person is in full consciousness of Me by such devotion, he can enter the world of Vaikuntha.
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.