ब्रह्मभूत: प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति ।
सम: सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम् ॥ ५४ ॥
अनुवाद
जो व्यक्ति इस प्रकार आध्यात्मिक रूप से उन्नत अवस्था में है, वह तुरंत परमब्रह्म का अनुभव करता है और पूरी तरह से आनंदित होता है। वह कभी शोक नहीं करता है या किसी चीज की इच्छा नहीं रखता है। वह हर जीव के प्रति समान भाव रखता है। उस अवस्था में वह मेरी शुद्ध भक्ति प्राप्त करता है।