सिद्धिं प्राप्तो यथा ब्रह्म तथाप्नोति निबोध मे ।
समासेनैव कौन्तेय निष्ठा ज्ञानस्य या परा ॥ ५० ॥
अनुवाद
हे कुन्तीपुत्र! अब मैं तुम्हें संक्षेप में बताऊंगा कि जिस तरह जिसने इस सिद्धि को प्राप्त किया है, वह परम सिद्धावस्था अर्थात् ब्रह्म और सर्वोच्च ज्ञान की अवस्था को कैसे प्राप्त कर सकता है।