श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 18: संन्यास योग » श्लोक 46 |
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| | श्लोक 18.46  | यत: प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम् ।
स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानव: ॥ ४६ ॥ | | | अनुवाद | भगवान् की पूजा करके, जो समस्त प्राणियों के मूल हैं और जो सर्वव्यापी हैं, मनुष्य अपना कर्म करते हुए पूर्णता प्राप्त कर सकता है। | | By worshiping the Lord who is the origin of all beings and is omnipresent, a human being can achieve perfection in performing his duties. |
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