श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 18: संन्यास योग  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  18.46 
 
 
यत: प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम् ।
स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दति मानव: ॥ ४६ ॥
 
अनुवाद
 
  जो सभी प्राणियों की उत्पत्ति का कारण है और जिसका वास हर जगह है, ऐसे भगवान की आराधना करके मनुष्य को अपना कार्य करते हुए पूर्णता मिलती है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.