श्रीमद् भगवद्-गीता » अध्याय 18: संन्यास योग » श्लोक 43 |
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| | श्लोक 18.43  | |  | | शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे चाप्यपलायनम् ।
दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम् ॥ ४३ ॥ | | अनुवाद | | योद्धाओं (क्षत्रियों) के स्वाभाविक गुण वीरता, शक्ति, साहस, दक्षता, युद्ध में धैर्य, उदारता और नेतृत्व होते हैं। | |
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