श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 18: संन्यास योग  »  श्लोक 39
 
 
श्लोक  18.39 
 
 
यदग्रे चानुबन्धे च सुखं मोहनमात्मन: ।
निद्रालस्यप्रमादोत्थं तत्तामसमुदाहृतम् ॥ ३९ ॥
 
अनुवाद
 
  और वह ख़ुशी जो आत्म-साक्षात्कार से अँधा है, जो शुरू से अंत तक भ्रम-भरा है और जो नींद, आलस्य और भ्रम से उत्पन्न होती है, उसे अज्ञानता की प्रकृति का कहा जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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