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श्लोक 18.36  |
सुखं त्विदानीं त्रिविधं शृणु मे भरतर्षभ ।
अभ्यासाद्रमते यत्र दु:खान्तं च निगच्छति ॥ ३६ ॥ |
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अनुवाद |
हे भरतश्रेष्ठ! अब कृपया मुझसे उन तीन प्रकार के सुखों के विषय में सुनिए, जिनसे बद्धजीव भोगता है और जिनके द्वारा वह कभी-कभी समस्त दुःखों से मुक्त हो जाता है। |
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Now hear from me about the three kinds of happiness by which the conditioned soul enjoys and by which sometimes sufferings come to an end. |
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