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श्रीमद् भगवद्-गीता
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अध्याय 18: संन्यास योग
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श्लोक 33
श्लोक
18.33
धृत्या यया धारयते मन:प्राणेन्द्रियक्रिया: ।
योगेनाव्यभिचारिण्या धृति: सा पार्थ सात्त्विकी ॥ ३३ ॥
अनुवाद
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हे पृथापुत्र! जो धृति अटूट है और जिसका योगाभ्यास से निरंतर अवलंबन किया जाता है और इस प्रकार मन, प्राण तथा इन्द्रियों को नियंत्रण में रखती है, उसे सात्त्विक धृति कहा जाता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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