त्याज्यं दोषवदित्येके कर्म प्राहुर्मनीषिण: ।
यज्ञदानतप:कर्म न त्याज्यमिति चापरे ॥ ३ ॥
अनुवाद
कुछ विद्वानों का कथन है कि कामनाओं की सिद्धि के लिए किये जाने वाले सभी प्रकार के कर्मों को दोषपूर्ण समझकर छोड़ देना चाहिए। लेकिन अन्य विद्वानों का मानना है कि यज्ञ, दान और तपस्या जैसे कर्मों को कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए।