श्रीमद् भगवद्-गीता  »  अध्याय 18: संन्यास योग  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  18.29 
 
 
बुद्धेर्भेदं धृतेश्चैव गुणतस्त्रिविधं श‍ृणु ।
प्रोच्यमानमशेषेण पृथक्त्वेन धनञ्जय ॥ २९ ॥
 
अनुवाद
 
  हे धनवीर अर्जुन! अब मैं प्रकृति के तीनों गुणों के अनुसार विभिन्न प्रकार की बुद्धि और दृढ़ता के बारे में विस्तार से बताऊंगा। तुम इसे ध्यान से सुनो।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.